कायोत्सर्ग हठयोग का शब्द है जिसका अर्थ है श्वसन अथवा मूर्दे की तरह हो जाना। इसमें मुर्दे जैसा नहीं बनना बल्कि अपने काया का उत्सर्ग करना है। कायोत्सर्ग में शारीरिक प्रवृत्तियों का शिथिलीकरण होता है। यही नहीं चैतन्य के प्रति जागरुकता भी होती है।
कायोत्सर्ग की सबसे महत्व पूर्ण बात है कि हम ममत्व का विसर्जन करें। यदि ममत्व है तो वह हमारे अध्यात्म मार्ग में भी बाधा पहुँचता है। ममत्व ग्रंथी का प्रबल होना अध्यात्म में बाधक है। कोई भी शरीरिक या मानसिक रोग ग्रंथियों के प्रबलता के कारण आ सकते है। शरीर के प्रति हमारी आसक्ति नहीं रहती है तो शरीर अधिक काम देता है।
शरीर के प्रति आसक्ति बढ़ाना बीमारीयों को निमंत्रन देना है। कायोत्सर्ग करना अर्थात सब दु:खों से छुटकारा प्राप्त करना है। वैसे तो वह बड़ी कठिन बात है परंतु विज्ञान के माध्यम से समझे तो हमें समझ में आती हैं विज्ञान कहता हैं। हमारे मस्तिष्क में कई तरंगें होती है। जिसे अलफा, बीटा, थीटा तथा गामा कहते हैं। जब अलफा तरंगे संचारित होती है तो मानसिक तरंगों से मुक्ति मिलती है। शांति प्राप्त होती है। कायोत्सर्ग अर्थात शरीर के शिथिलीकरण के समय अलफा तरंगे अधिक संचारित होती है। शरीर को ढीला छोड़ दिया जाता है तो वह कायोत्सर्ग की स्थिति में आता है। ढीला छोड़ना, शरीर का कायोत्सर्ग और जैसे शरीर को ढीला छोड़नें मन में हम शांति का अनुभव करते है।कायोत्सर्ग की सबसे महत्व पूर्ण बात है कि हम ममत्व का विसर्जन करें। यदि ममत्व है तो वह हमारे अध्यात्म मार्ग में भी बाधा पहुँचता है। ममत्व ग्रंथी का प्रबल होना अध्यात्म में बाधक है। कोई भी शरीरिक या मानसिक रोग ग्रंथियों के प्रबलता के कारण आ सकते है। शरीर के प्रति हमारी आसक्ति नहीं रहती है तो शरीर अधिक काम देता है।
विज्ञान कहता है अनेक रसायन के माध्यम से हम अपने शरीर की पीड़ाओं को दूर कर सकते हैं। हमारे मस्तिष्क सुषुम्ना में अनेक रसायन पैदा होते है जो पीड़ा को कम कर देते हैं जब व्यक्ति भक्ति योग में तल्लीन जो जाता है अथवा ध्यान की गहरीई में उतरना है तो शरीर के रोगों को भूल जाता है। यही स्थिति कायोत्सर्ग में बनती हैं व्यक्ति अपने तनावों और दर्द को भूल जाता है। जहॉं हमें तानव होगा वहॉं दर्द बढ़ जाएगा। शरीर को ढीला छोड़ दो या पीड़ा या दर्द खत्म हो जाएगा। जिस सुषुम्ना से शरीर में रसायन पैदा होते हैं वह कायोत्सर्ग से संभव होते हैं। कायोत्सर्ग द्वारा रक्त विकार और मोह शांत हो जाता है। हमारें मस्तिष्क में हो विकारों की बीमारी है वह शांत हो जाएगी। रक्तचाप में कायोत्सर्ग एक संजीवनी बुटी का काम करता है। गम्भीर मानसिक रोगों के लिए पूरा दिन कायोत्सर्ग करे फिर धीरे-धीरे कम कम करते हुए एक दो घंटे का समय निश्चित रखना चाहिए। इससे मानसिक रोगों पर बहुत जल्द ही नियंत्रन पाया जा सकता है। कायोत्सर्ग हृदय, मस्तिष्क, मेरुदण्ड के लिए भी बहुत उपायोगी है। ये तीनों यदि स्वस्थ है तो व्यक्ति अनेक बीमारीयों से दूर रहता है। मानसिक तनावों के लिये यह बहुत उपयोगी है। किसी मन: चिकित्सक के पास यदि व्यक्ति जाता है तो वह यही कहता है कि तुम बिल्कुल ढीले होकर सो जाओ। शरीर के शिथलीकरण से मस्तिष्क के स्नायुओं का शिथिलीकरण और प्राणों का संतुलन हो जाता है। प्राण का संतुलन कायोत्सर्ग के समय होते है।
प्राण ऊर्जा का प्रवाह संतुलित रहना चाहिए। जहॉं पर प्राण ऊर्जा के प्रवाह में असंतुलन पैदा होता है, वहॉं कोई नकोई रोग अवश्य हो जाता है। यदि प्राण ऊर्जा बहुत अधिक है तो वह रोगों का कारण बनती है। प्राण ऊर्जा नाभि क्षेत्र में अधिक होती है तो क्रोध बढ़ता है चिड़चिडापन बढ़ता है। प्राण का संतुलन रहे तो व्यक्ति अनेक विकृतियों से बच जाता है। प्राण का संतुलन एक सुंदर उपाय है। प्राण ऊर्जा का एक उपाय है मंद श्वास। जहॉं भी ऐसा लगे हमारे अंदर तनाव बढ़ रहे तो श्वासों को मंद-मंद रहिये। अच्छे स्वस्थ के लिये यह लक्षण है कि श्वास कभी तेज न हो। प्राण का संतुलन, श्वासों को मंद भरना कायोत्सर्ग से संभव है। अनिद्रा, थकान जैसी बीमारीयों पर भी कायोत्सर्ग एक बहुत महत्वपूर्ण विधान है।
शरीर में खिंचाव तथा शिथिलीकरण असे अनेक रोग दूर होते है। शिथिलीकरण शरीर को ढीला छोड़ना और मॉंसपेशियों में खिचाव यानि योगासन। योगासन के माध्यम से मांसपेशियों में खिचाव उत्पन कर सकते हैं और कायोत्सर्ग से शिथिलीकरण। इसलिए विधान है कि कोई भी आसन करे तो उसका विपरीत आसन कर लेना चाहिए। यदि संवर्गिं आसन क्रिया है तो उसका विपरीत मत्स्यासन करो। कोई शारीरिक आसन करने के पश्चात् शवासन अर्थात कायोत्सर्ग एक मिनिट के लिए अवश्य करे। हमारा हृदय भी एक क्षण चलता है दूसरे क्षण कायोत्सर्ग करता है ऐसा करने से ही वह निरंतर चलता रहता है। कायोत्सर्ग करने से शरीर और मन दोनों ही विश्राम पाते हैं। हमारे मन पर बहुत बड़ा भार होता है उसको कायोत्सर्ग के माध्यम से हटाया जा सकता है।
हमारे मन पर भार अनेक घटनाओं का होता है। अपने कुविचारों का होता है। मन का भार हटाने लिए प्रायश्चित एक विद्या है। हमारे हाथों से कोई गलत कार्य हो गया आठ बार श्वासों सग कायोत्सर्ग करो। कुछ व्हवहार अकारण हो जाए तो प्रन्द्रह बार श्वासोश्वास कायोत्सर्ग करो। इससे चित्त की शु़ध्दि हो जाती है। अकारण कार्य के प्रभाव से हमारे मस्तिष्क पर बढ़ा हुआ बोझ उतर जाता है। जैसे वजन ढोने वाला व्यक्ति भार का अनुभव करता है परंतु जैसे ही वह वजन उतारकर नीचे रखता है तो यह अनुभव करता है कि वह हल्का हो गया है। उसी तरह हमारे आचरण घटनायों और परिस्थितियों को बोझ हमारे मन पर होता है जो की कायोत्सर्ग से समाप्त होता है। कायोत्सर्ग के रहस्यपूर्ण प्रयोग, खड़े-खड़े कायोत्सर्ग भी किया जा सकता है। भगवान महावीरजी ने उर्ध्व कायोत्सर्ग बताया जिससे खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करना बताया उसमें एक रहस्य प्रकट होता है। उर्ध्व कायोत्सर्ग द्वारा प्राण ऊर्जा संतुलन हो जाती है। कही अधि एकत्रित नहीं हो पाती। ब्रह्मचर्य सिध्दी का यह रहस्यपूर्ण प्रयोग है। जिसमें रागात्मक प्रवृत्ति है वह अधिक बैठना नहीं चाहता जिसमें द्वेषात्मक प्रवृत्ति है वह ज्यादा चलना नहीं चाहता। रागात्मक प्रवृत्ति के लिये गमनयोग है। वह उर्ध्वस्नान ब्रह्मचार्य की साधना का महत्वपूर्ण सूत्र है। बैठकर कायोत्सर्ग करने से गुरुत्वा आकर्षण कम हो जाता है तो वह भी भार उत्पन्न करता है। कायोत्सर्ग की अवस्था में बैठे है तो गुरुत्वाआकर्षण कम हो जाता है। इसलिए हर व्यक्ति को अपने कार्य करने कुछ घंटे पश्चात कायोत्सर्ग कर लेना चाहिए।
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