कोई भी मनुष्य अस्वस्थ नहीं रहना चाहता फिर प्रश्न यह उठता है कि रोग होते क्यों हैं? मनुष्य के रोग ग्रस्त होने के दो कारण होते है। मनुष्य की स्वंय के प्रति लापरवाही, गलत खानपान, हानीकारक पदाथों का सेवन, मानसिक तनाव, व्यसन आदि से कई रोग शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते है।
दूसरा व्यक्ति का स्वंय पर नियंत्रण नहीं होता जैसे प्रदूषन, संक्रमण, चोट लगना, अंग भंग हो जाना, उम्र के साथ होने वाले रोग, अनुवांशिक या जन्मजात रोग। मानव शरीर में किसी न किसी प्रकार का रोग छिपा रहता है यह प्रक्रिया मानव सभ्यता की शुरुआत से चली आ रही है।
दूसरा व्यक्ति का स्वंय पर नियंत्रण नहीं होता जैसे प्रदूषन, संक्रमण, चोट लगना, अंग भंग हो जाना, उम्र के साथ होने वाले रोग, अनुवांशिक या जन्मजात रोग। मानव शरीर में किसी न किसी प्रकार का रोग छिपा रहता है यह प्रक्रिया मानव सभ्यता की शुरुआत से चली आ रही है।
रोगों को ठीक करने के लिए मनुष्य ने अनेक चिकित्सा पध्दतिओं का अविष्कार किया है। एक्युप्रेशर चिकित्सा पध्दति के बारे में लोग यह मानते है कि यह चिकित्सा पध्दति भारतवर्ष की है। कुछ लोग यह मानते है कि यह चीन की पध्दति है, परंतु इस चिकित्सा को लोगों तक पहुँचाने का श्रेय चीन को है। चीन में एक्यूप्रेशर एवं एक्यूपंचर के ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। चीन चु यु सुए है (अर्वाचीन एक्यूपंचर) नामक ग्रंथ में इस विषय का विस्तुत वर्णन है। इसमें एक्यूप्रेशर से संबंधित 669 बिन्दुओं की सूची दी गई है। अन्य में एक हजार के करीब भी है परंतु दैनिक जीवन में 100 या 120 बिन्दु ही अधिक महत्वपूर्ण है। एक्यू या अर्थ बिन्दु और प्रेशर का अर्थ दबाव होता है। छटी शताब्दी में यह ज्ञान बौध्द भिक्षुओं के द्धारा जापान पहुँचा। जापान में इस चिकित्सा पध्दति को शिआत्सु कहते है। शि अर्थात उँगली आत्सु यानी दबाव। इस पध्दति में सिर्फ हाथ के अँगूठों से तथा उँगलियों के साथ दबाव दिया जाता है। वैज्ञानिक शोधों से यह निष्कर्ण निकला है कि त्वचा पर मौजूद कुछ निश्चित बिन्दुओं पर दबाव देने से रोगों पर प्रभाव पड़ता है।
हम यह कह सकते है कि एक्यूप्रेशर भारतीय मालिश की पध्दति है। हमारे पैरों, हाथों, चेहरे पर कुछ प्रतिबिम्ब केन्द्र है जिन पर दबाव डालने से अनेक रोग ठीक होते हैं। मालिश यदि उन प्रति बिम्बों के दबाव के साथ की जाती है तो शरीर में स्फूर्ति आती है। शरीर को दबाव देने पर पसीने के द्वारा, विजातीय द्रव्य बाहार निकलते है और शरीर निरोग रहता है। इस पध्दति की सफलता का एक कारण यह है कि बिना ऑपरेशन के अनेको कष्टप्रद रोग कुछ ही समय में ठीक हो जाते है।
एक्यूप्रेशर और एक्यूपंचर में अंतर: एक्यूप्रेशर लेटीन शब्द अर्ली (एकस) से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है, दबाव अर्थात सुईयों द्वारा किए गए उपचार को एक्यूपंचर कहा जाता है। एक्यूप्रेशर और एक्यूपंचर दोनों ही चीनी पध्दतियॉं है। एक्यूपंचर को लोग भारतीय विधा का परिष्कृत रुप मानते है। हमारी भारतीय पध्दतियों में नाक, कान, छेदन तथा अलंकार पहनने की प्रथा थी जिसके कारण अनेक रोग ठीक होते है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा पध्दति से लाभ: एक्यूप्रेशर से आप स्वंय बिन्दुओं पर दबाव देकर अनेक रोग ठीक कर सकते है। कमर, घुटने, कंधे, कोहनी तथा सिरदर्द के अलावा अन्य कहीं किसी भी अंग पर दर्द होने की स्थिति में निश्चित बिन्दुओं पर दबाव डालने से सहायता मिलती है। मन की उध्दिग्रता, क्रोध, बैचेनी, निराशा तथा ईर्ष्या आदि को दूर करने में यह पध्दति बहुत लाभदायक है। मन में किसी भी प्रकार की निराशा होने पर एक्यूप्रेशर पध्दति अपनाये। एक्यूप्रेशर की सहायता से स्नायुओं को उत्तेजित करने में मदद मिलती है। इसकी सहायता से लोग पोलीयो, लकवा जैसे रोगों में भी बहुत राहत अनुभव कर सकते हैं।
इससे शरीर के प्राकृतिक रोग निवारण शक्तिओं में बढोतरी होती है। इसके प्रभाव से हृदय की धड़कन, श्वास क्रिया, उपापचय, रक्तचाप सामान्य रहता है। जिससे व्यक्ति सदैव सामान्य तथा स्फूर्तिवान रहता है, एक्यूप्रेशर से लाल रक्त कोशिकाएँ श्वेत रक्त कोशिकाऍं तथा शरीर का तापमान आदि सब सामान्य स्तर पर रहते है और शरीर निरोगी रहता है। एक्यूप्रेशर की सहायता स्नायुओं को मजबूत किया जा सकता है। हृदय शुल (हार्ट अटैक) की स्थिति में चिकित्सक के आने तक रोगी को चिकित्सालय पहुँचाने तक एक्यूप्रेशर के उपचार से जान का खतरा टाला जा सकता है। इस पध्दति के उपचार से समस्त ग्रंथिओं का कार्य नियमित हो जाता है। एक्यूप्रेशर से आंतरिक अंगों के साधारण कार्य में तेजी लाई जा सकती है। एक्यूप्रेशर से त्वचा में स्फुर्ति बढ़ती है। एक्यूप्रेशर हानिरहित पध्दति है, जिसे अन्य चिकित्सा पध्दति के साथ अपनाया जा सकता है।
एक्यूप्रेशर पध्दति से ऑपरेशन की स्थिति जैसे पथरी, ऑंख में मोतिया बिन्द, कैंसर, हड्डि टूटने, मानसिक रोगो आदि में लाभ नहीं होता है। शल्य क्रिया की स्थिति में अधिक लाभ नहीं होता। एक्यूप्रेशर सिध्दांत है कि यह मनुष्य को भावनात्मक एवं शारीरिक रुप से एक मानती है। दूसरा इसका यह सिध्दांत है कि रक्त संचार, नाडि़यों, स्नायु- संस्थान, एवं ग्रंथियों के अंतिम सिरे हथेली अथवा तलवे में स्थित होते है। इस पध्दति का मुख्य उद्येश्य है स्नायु संस्थान को ठीक करना। हथेलियों और तलवों में जो प्रतिबिन्दु केन्द्र होते है उनके दबाने पर अनेक रोग ठीक होते है। हमारे शरीर की समस्त क्रियाओं को दोनों भागों में बांटा जाता है एक ऐच्छिक क्रियाएँ तथा दूसरी अनैच्छिक क्रियाऍं एक तीसरे प्रकार की क्रिया होती है उसे रिफलेक्स क्रियाऍं कहते है। ऐच्छिक क्रियाओं में खाना, बात करना, सोना सोचना आदि है अनैच्छिक क्रियाओं में भोजन पाचन, मलमूत्र निर्माण, रक्त परिभ्रमण, हृदय का संकुचन आदि प्रमुख है। शरीर में ये दोनों क्रियाऍं मस्तिष्क एवं इच्छाशक्ति के आधार पर यदि हमारा हाथ किसी गर्म वस्तु को छु जाता है तो सेकंड के सौवे हिस्से में हम अपने आप उसे खींच लेते हैं। ऐसी क्रियाओं को रिफलेक्स क्रिया कहा जाता है।
यदि कोई अंग रोग ग्रस्त हो जाता है तो तुरंत ही उसका रिफलेक्स कुछ विषेश बिन्दुओं पर पड़ता है जिन्हें रिफलेक्स सेन्टर कहते है। दबाव देने पर तुरंत उन बिन्दुओं पर दर्द होने लगता है। दर्द युक्त बिन्दुओं को दबाने से विद्युत तरंगे उत्पन्न होती है। ये तरंगे पलभर में ही संबंधित अंग तक पहुँच जाती है और रोग को ठीक करने की क्रिया प्रारंभ कर देती है। जीवन शक्ति का तीव्र संवहन नाडी- संस्थान के द्वारा ही संभव है। एक्यूप्रेशर द्वारा जिन बीमारीयों में सबसे अधिक लाभ होता है वह है, साईटिका, पुराना जुकाम, नजला, स्लिप डिक्स, गर्दन का दर्द, पीठ का दर्द, पैरों तथा एडियों का दर्द, पिण्डलियों में ऐंठन, बल्ड प्रेशर, कब्ज, गठिया, मानसिक धर्म, डिप्रेशन, अनिद्रा, स्मरण शक्ति, माईग्रेन आदि है। एक्यूप्रेशर चिकित्सा पध्दति के द्वारा उपचार कही पे भी किया जा सकता है, परंतु भोजन के एक घंटे पहले तथा एक घंटे बाद ही उपचार ले।
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