रंग चिकित्सा को क्रोमोपैथी भी कहा जाता है। क्रोमो अर्थात रंग और पैथी यानि चिकित्सा। रंग चिकित्सा से भी कई प्रकार के रोगों को ठीक किया जा सकता है। रंग सूर्य की किरणों में होते हैं, जो हवा को शुद्ध करते हैं। वह पानी एवं भूमि के अनेक कीटाणुओं का नाश करके हम तक नैसर्गिक रूप से वायु को पहुँचाने में सहयोग करते हैं। हमारी संस्कृति में सूर्य की उपासना को महत्व दिया है। आरोग्य के देवता सूर्य हैं। सूर्य की आराधना, उपासना, सुर्य को
अर्ध्य देने से ही अनेक रोग दूर हो जाते हैं।
अर्ध्य देने से ही अनेक रोग दूर हो जाते हैं।
सूर्य के प्रकाश में मुख्यत: तीन रंग प्रमुख माने जाते हैं। लाल, पिला, और निला। लाल रंग का गुण है ऊष्णता और उत्तेजना देना, इस रंग में रजोगुण अधीक होता है। पीले रंग का उपयोग चमक देने के लिये होता है यह शरीर की इन्द्रियों को उत्तेजीत करता है, इसमें तमोगुण की प्रधातना रहती है नीला रंग-इसकी प्रमुखता है, शरीर को शीतलता प्रदान यह सत्वप्रदान करता है। इन तीनों के अलावा प्रिज्म से देखने पर हमें ज्ञात होता है कि अन्य रंग भी है, जो इन्हीं तीनों को मिलाकर बनते है, जिसमें नारंगी, हरा, परपल, जामुनी, गुलाबी, सुनहरा इत्यादी है। तरह-तरह के रंग तरह-तरह के रोगों को ठीक कर सकते है। लाल रंग प्रेम भावना का प्रतीक है। यदी इस लाल रंग को शरीर के खुले भाग में लेन्स द्वारा डाला जाए तो यह लाल रंग गुलाबी आर्टरी के खून को बढ़ाने तथा उष्णता निर्माण करने में सहायक होता है। पीला रंग, नारंगी रंग बुध्दि का प्रतीक है। ये नर्व्हस एक्शन बढ़ाते है तथा ऊष्णता का निर्माण करते है। सूजन दूर करके शक्ति का निर्माण करते है। यह रंग यकृत तथा पेट संबंधि रोगों के लिये अधीक उपयोगी है।
नीला तथा जामुनी रंग नर्वस संबंधी उत्तेजना कम करने है। सूजन, बुखार, तीव्र दर्द को कम करते है। नीला तथा जामुनी रंग मस्तिष्क की बीमारीयों को कम करता है, यह सत्य तथा आशा का प्रतीक है।
हरा रंग आशा समृध्दि और बुध्दि का प्रतीक है। ज्वर स्त्रियों के रोग, लैगिंक, नितम्ब आदि के दर्द के लिये कैंसर, अलसर आदि रोगों के लिये यह उपयुक्त होता है।
परपल यह रंग यश और प्रसिध्दि का प्रतीक है। यह अशुध्द रक्त को शुध्द करने, ... यकृत स्प्लीन, नव्हस सिस्टम के लिये उपयोगी होता है। इसके अलावा अल्टाव्हायलेट विविधता तथा कार्य क्षमता को बढ़ाने वाला रंग होता है। दैनिक दिन चर्या में हम रंगों का उपयोग कर अपने को स्वस्थ रख सकते है। लाल रंग की मात्रा को बढ़ाने के लिये हमें लाल तथा गुलाबी रंगों के फल एवं सब्जियों का सेवन करना चाहिये। ये हमारे शरीर में टॉनिक के रुप में कार्य करते है। इनके सेवन से कमजोरी दूर होती है।
पीले तथा नारंगी रंग के सब्जियॉं फल कोष्ठ बध्दता (कब्जियत) को दूर करता है। इस रंग के फल, सब्जियाँ पदार्थ वायु रोग (संधिवात) तथा मूत्र रोग में उपयोगी है।
नीले, जामुनी रंग की सब्जियॉं और फल ठण्डे होने के कारण निद्रानाश में नींद न आने के होने वाले रोगों में फायदा करते है ये ज्वर का भी नाश करते है। पानी सूर्य के प्रकाश में दो-तीन घंटा रख कर पीने से सर्दी, संधिवात, नव्हस रोग आदि में उपयोगी होता है। भोजन को यदी लाल रंग में रखकर सूर्य किरणों में रखा जाए तो उससे कमजोरी दूर होती है। पीले रंग की प्रकाश किरणे डालने पर कोष्ठबध्दाता दूर होती है। नीले रंग से सूर्य के प्रकाश डालने पर यह अनिद्रा की बीमारी से बचाता है। सभी ऋतुओं में सफेद कपड़े पहनने से शरीर निरोगी रहता है। नीली टोपी या नीली पगड़ी पहनने से सूर्य की उष्मा से होने वाली तकलीफ कम होती है। जो शरीर से कमजोर है उन्हें लाल वस्त्र पहनना चाहिये। जिसे यकृत पेट संबंधीत तकलीफ हो, उन्हें पीले कपड़े पहनना चाहिये। बार-बार सर्दी होने वाले को सफेद कपडे पहनना और धूप में घुमना चाहिये। रंगो से तेल को सुर्य किरणों में चार्ज किया जाता है जिससे अनेक रोग दूर होते है। नीले तथा जामुनी रंग से तेल चार्ज करके सिर पर लगाने से बालों का झड़ना खत्म होता है।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें