दैनिक
जीवन में अभिवादन का महत्वपूर्ण स्थान है। हममें से अधिकाश लोग इस ओर
ध्यान नहीं देते। अभिव्यक्ति के महत्व की अन्नभिज्ञता की वजह से हम किसी भी
तरह अभिवादन की औपचारिकता भर कर लेते है, जिसका सामने वाले व्यक्ति पर
लगातार प्रभाव पड़ता है।
आजकल हमारी भारतीय संस्कृति का किस प्रकार हनन हो रहा है, यह सभी लोग जानते है। दूसरे अर्थो में भारतीय संस्कृति मूल से भटककर पाश्चात्य संस्कृति की चपेट में आ गई है। चारो ओर देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि पाश्चात्य संस्कृति आचार-विचारों पर ही नहीं अभिवादन के तौर तरीकों तथा भाव पर भी हावी हो चुका है।
भारतीय संस्कृति की परंपरा के अनुसार दिवाली, होली पर छोटे अपने से बड़ों के पैर छू कर आशीर्वाद लेते थे किन्तु आज बहुत से लोग फोन पर ही हैप्पी दिवाली, हैप्पी होली बोल देते है। आज कल इन त्यौहारों में सिर्फ औपचारिकता रह गई है।आज कल पैर छू कर आशीर्वाद लेने में लोगों को शर्मिन्दगी महसूस होने लगी है।
भारतीय संस्कृति के अनुसार बालक का प्रथम परिचय हाथ जोड़ कर नमस्ते, जय जय से करवाया जाता है। यह अभिवादन बालक को बड़ो से तथा ईश्वर से जोडने का प्रतीक है। छोटा बच्चा जब पहली बार जय जय बोलता है तो घर के सभी लोगों को यह आवाज़ बहुत अच्छी लगती है वे उसे बार-बार सुनना चाहते है। इसी तरह बोलने का अभ्यास कराने के लिए विभिन्न तरीके अपनाते है, परन्तु बड़े होते होते यही बालक मॉं को हाय मॉम से सम्बोधित करता है, तो वह सोचती रह जाती है जय जय के क्षणों को, और स्वीकार लेती है हाय मॉम हाय ममा को। इसी तरह पिताजी नाम को भी डैड और पॉप बना दिया गया है। आज कल पिताजी को प्रणाम के बदले हाय डैड होने लगा है। पिताजी आशीर्वाद देना भी चाहे तो कैसे दें?
हृदय से अभिवादन करता हुआ बालक शालीनता, विनम्रता तथा संस्कारिता का परिचय तो देता ही है, साथ में प्राप्त करता है अनेक आर्शिवाद। बड़ों को अभिवादन यदि विनम्रतापूर्वक किया जाय तो बच्चों को चार चीज़ें प्राप्त होती हैं - १ आयू, २ विद्या, ३ यश और ४ बल।
बड़ों का आशीर्वाद वैसे तो बच्चों के लिए हमेशा रहता है लेकिन जब बालक नम्रतापूर्वक सर झुका कर पैर छू कर नमस्कार करता है तो बड़ों का हृदय गदगद हो जाता है और अपने आप की दिल से आशीर्वाद निकलने लगते है। बेटा सुखी रहो, भगवान तुम्हे लम्बी आयू दे, ईश्वर तुम्हे हर कदम पर सफलता दे, बहुत बडे बनो। ऐसे अनेक अशीर्वाद मिलते जाते है और मन से निकला हुआ हर एक वचन अनमोल होता है। ये वचन ही वास्तव में सफलता की ओर ले जाते है। परन्तु यह कैसी विडम्बना है कि पाश्चात्य संस्कृति की चपेट में आ कर बच्चे हार्दिक अभिवादन के स्थान पर मात्र औपचारिकता निर्वाह करने लगे है। आजकल बड़ों के पैर छू कर नमस्कार करने में लोगों को शर्म आने लगी है।
भारतीय संस्कृति के अनुसार घर में आई नई वधू अपनों से बड़ों के पैर दबा-दबाकर छुआ करती है। प्रत्येक दबाव के साथ अनेक आशीर्वाद प्राप्त होते थें किन्तु आज पैर छूकर पैरो को स्पर्श किया या नहीं किया। सिर्फ इतनी ही परिपाटी शेंष बची है और यह परिपाटी भी अब खत्म होने लगी है।
आज कल पाश्चात्य संस्कृति इस प्रकार हावी होने लगी है कि हम बड़ो का आदर-सत्कार भूलते से जा रहे है। अभी भी बहुत से घरों में हाय-हलो का प्रचलन नहीं होगा किन्तु फिर भी प्रणाम नमस्ते अब पहले जैसा भाव पूर्ण नहीं रहा औपचारिक नमस्ते का प्रयोग जगह जगह दिखाई देता है। शिक्षक व शिष्य के बीच में भी अब औपचारिकता का समावेश हो गया है।
अब अगर शिष्य को गुरु की आवश्यकता है तो ही वह नमस्कार करता है, अन्यथा नहीं। दोस्तों के बीच में अब सिर्फ हाय-हेलो ही रह गया है। कई बार तो केवल हाथों के ईशारों से हाय-हेलो हो जाया करता है। अधिक धनवान और सभ्य लोगों के यहॉ प्रथम परिचय हाय से ही होता है।
आजकल हमारी भारतीय संस्कृति का किस प्रकार हनन हो रहा है, यह सभी लोग जानते है। दूसरे अर्थो में भारतीय संस्कृति मूल से भटककर पाश्चात्य संस्कृति की चपेट में आ गई है। चारो ओर देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि पाश्चात्य संस्कृति आचार-विचारों पर ही नहीं अभिवादन के तौर तरीकों तथा भाव पर भी हावी हो चुका है।
भारतीय संस्कृति की परंपरा के अनुसार दिवाली, होली पर छोटे अपने से बड़ों के पैर छू कर आशीर्वाद लेते थे किन्तु आज बहुत से लोग फोन पर ही हैप्पी दिवाली, हैप्पी होली बोल देते है। आज कल इन त्यौहारों में सिर्फ औपचारिकता रह गई है।आज कल पैर छू कर आशीर्वाद लेने में लोगों को शर्मिन्दगी महसूस होने लगी है।
भारतीय संस्कृति के अनुसार बालक का प्रथम परिचय हाथ जोड़ कर नमस्ते, जय जय से करवाया जाता है। यह अभिवादन बालक को बड़ो से तथा ईश्वर से जोडने का प्रतीक है। छोटा बच्चा जब पहली बार जय जय बोलता है तो घर के सभी लोगों को यह आवाज़ बहुत अच्छी लगती है वे उसे बार-बार सुनना चाहते है। इसी तरह बोलने का अभ्यास कराने के लिए विभिन्न तरीके अपनाते है, परन्तु बड़े होते होते यही बालक मॉं को हाय मॉम से सम्बोधित करता है, तो वह सोचती रह जाती है जय जय के क्षणों को, और स्वीकार लेती है हाय मॉम हाय ममा को। इसी तरह पिताजी नाम को भी डैड और पॉप बना दिया गया है। आज कल पिताजी को प्रणाम के बदले हाय डैड होने लगा है। पिताजी आशीर्वाद देना भी चाहे तो कैसे दें?
हृदय से अभिवादन करता हुआ बालक शालीनता, विनम्रता तथा संस्कारिता का परिचय तो देता ही है, साथ में प्राप्त करता है अनेक आर्शिवाद। बड़ों को अभिवादन यदि विनम्रतापूर्वक किया जाय तो बच्चों को चार चीज़ें प्राप्त होती हैं - १ आयू, २ विद्या, ३ यश और ४ बल।
बड़ों का आशीर्वाद वैसे तो बच्चों के लिए हमेशा रहता है लेकिन जब बालक नम्रतापूर्वक सर झुका कर पैर छू कर नमस्कार करता है तो बड़ों का हृदय गदगद हो जाता है और अपने आप की दिल से आशीर्वाद निकलने लगते है। बेटा सुखी रहो, भगवान तुम्हे लम्बी आयू दे, ईश्वर तुम्हे हर कदम पर सफलता दे, बहुत बडे बनो। ऐसे अनेक अशीर्वाद मिलते जाते है और मन से निकला हुआ हर एक वचन अनमोल होता है। ये वचन ही वास्तव में सफलता की ओर ले जाते है। परन्तु यह कैसी विडम्बना है कि पाश्चात्य संस्कृति की चपेट में आ कर बच्चे हार्दिक अभिवादन के स्थान पर मात्र औपचारिकता निर्वाह करने लगे है। आजकल बड़ों के पैर छू कर नमस्कार करने में लोगों को शर्म आने लगी है।
भारतीय संस्कृति के अनुसार घर में आई नई वधू अपनों से बड़ों के पैर दबा-दबाकर छुआ करती है। प्रत्येक दबाव के साथ अनेक आशीर्वाद प्राप्त होते थें किन्तु आज पैर छूकर पैरो को स्पर्श किया या नहीं किया। सिर्फ इतनी ही परिपाटी शेंष बची है और यह परिपाटी भी अब खत्म होने लगी है।
आज कल पाश्चात्य संस्कृति इस प्रकार हावी होने लगी है कि हम बड़ो का आदर-सत्कार भूलते से जा रहे है। अभी भी बहुत से घरों में हाय-हलो का प्रचलन नहीं होगा किन्तु फिर भी प्रणाम नमस्ते अब पहले जैसा भाव पूर्ण नहीं रहा औपचारिक नमस्ते का प्रयोग जगह जगह दिखाई देता है। शिक्षक व शिष्य के बीच में भी अब औपचारिकता का समावेश हो गया है।
अब अगर शिष्य को गुरु की आवश्यकता है तो ही वह नमस्कार करता है, अन्यथा नहीं। दोस्तों के बीच में अब सिर्फ हाय-हेलो ही रह गया है। कई बार तो केवल हाथों के ईशारों से हाय-हेलो हो जाया करता है। अधिक धनवान और सभ्य लोगों के यहॉ प्रथम परिचय हाय से ही होता है।
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