मिट्टी भी चमत्कारी होती है! गमलों में रख कर पौधे लगायें व्यापार वृद्धि होती है।
सरकारी भवनों में लाल मिटटी व इसी मिटटी में लगे पौधे उन्नति देते हैं
कार्यालयों में रेतीली मिटटी व इसी मिटटी के गमलों में लगे पौधे उन्नति व लाभ देते है
व्यापार स्थल पर लाल व पीली मिटटी को मिला कर प्रयोग में लाना चाहिए व इसी मिटटी को गमलों में रख कर पौधे लगायें तो व्यापार वृद्धि होती है
अध्ययन कक्ष, लाइब्रेरी आदि में रेतीली व लाल मिटटी मिला कर उपयोग में लायें व इसी में पौधे उगाने से विद्या व ज्ञान का लाभ मिलता है
धार्मिक स्थलों व अस्पताल आदि में काली मिटटी का ही प्रयोग किया जाना चाहिए उसमें ही पौधे उगायें
घर के निर्माण के लिए लाल मिटटी वाली भूमि श्रेष्ठ होती है
कृषि के लिए काली व भूरी मिटटी श्रेष्ठ होती है
चिकित्सा के लिए चिकनी मिटटी, मुल्तानी मिटटी ज्यादा लाभदायक होती है
खेल सम्बन्धी स्थान के लिए रेतीली मिटटी उत्तम होती है
वास्तु के अनुसार सफेद मिटटी को ब्रह्मणि मिटटी कहा जाता है जो ज्ञान विचार बुद्धि विवेक धर्म कर्म में
बल देने वाली होती है
लाल रंग की मिटटी को कत्रानी मिटटी कहा गया है जो शक्ति देने वाली, उर्जा देने वाली, सत्ता का सुख
देने वाली और भोग देने वाली होती है
हरे रंग से मिलती जुलती मिटटी को वैश्य मिटटी कहा गया है जो धन लाभ, समृद्धि व सुखदायिनी होती है
काले रंग की मिटटी को शूद्रनी कहा गया है जो रहने के लिए उत्तम नहीं पर कृषि आदि कार्यों के लिए अच्छी
होती है तथा रोग हरनेवाली, आयु देने वाली, आनन्द देने वाली व यश देने वाली होती है
जिस मिटटी से सुगंध आती हो हर तरह से लाभ व उन्नति देती है
सडांध वाली मिटटी को अशुभ कहा गया है जिसका प्रयोग हर प्रकार से वर्जित होता है
मिट्टी दुनिया का सारा मल, कूड़ा या हर तरह की गन्दगी को अपने अंदर समा लेती है और खुद अपने आप में शुद्ध हो जाती है। ज़मीन के अंदर जो कुछ भी दबा दिया जाता है वह मिट्टी बन जाता है।
भारत की मृदा सम्पदा पर देश के उच्चावच तथा जलवायु का व्यापक प्रभाव परिलक्षित होता है। देश में इनकी विभिन्नताओं के कारण ही अनेक प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं। यहाँ की मिट्टी की विशेषताओं में मिलने वाली विभिन्नता का सम्बन्ध चट्टानों की संरचना, उच्चावचों के धरातलीय स्वरूप, धरातल का ढाल, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति आदि से स्थापित हुआ है।
इस्तेमाल में आने वाली मिट्टी
मिट्टी चाहे कोई सी भी किस्म की क्यों न हो लेकिन होनी साफ-सुथरी जगह की चाहिए जैसे जहाँ सूरज की रोशनी पहुँचती हो तथा ज़मीन से दो या ढाई फुट से निकाली हुई हो। हर मिट्टी को धूप में सुखाकर और छानकर इस्तेमाल करना सबसे अच्छा है। दीमक के टीले की मिट्टी बहुत ही ज़्यादा गुणकारी होती है। नहाने और सिर को धोने के लिए मुलतानी मिट्टी बड़ी लाभकारी होती है।
बालू भी मिट्टी को ही बोला जाता है जो किसी भी मनुष्य के लिए उसी तरह जरूरी है जिस तरह भोजन और पानी। लेकिन बालू मिट्टी के गुणों को केवल प्राकृतिक चिकित्सक ही अच्छी तरह जानते हैं। प्राकृतिक दशा में खाई जाने वाली खाने की चीज़ें जैसे साग-सब्जी, खीरा, ककड़ी आदि के साथ हमेशा बालू मिट्टी का कुछ भाग ज़रूर होता है, जिसे हम जानकारी ना होने के कारण गंवा देते है। ये बालू मिट्टी के कण हमारी भोजन पचाने की क्रिया को ठीक रखने मे मदद करते हैं।
क्या किसी ने सोचा है कि पहाड़ी झरनों के पानी को स्वास्थ्य के लिए अच्छा क्यों बताया जाता है? इस पानी को पीने से भूख ज़्यादा क्यों लगती है और पाचन क्रिया क्यों ठीक होती है? ये सब इसलिए होता है क्योंकि इस पानी में बालू मिट्टी के कुछ अंश मिले हुए होते हैं, जिन्हे पानी के साथ पिया जाता है। ये झरने जो पहाड़ों से बहकर आते हैं और अपने साथ बालू मिट्टी का ढेर लाते हैं, और ये पानी भोजन को पचाने वाले साबित होता है। बालू मिट्टी के अंदर छुतैल ज़हर को समाप्त करने की ताकत होती है। बालू मिट्टी प्रकृति की ओर से मानो संक्रमण को दूर करने वाली दवा का काम करती है। प्रयोगों द्वारा ये साबित हो चुका है कि बालू मिट्टी मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी है। जिस व्यक्ति को पेट के रोग जैसे - कब्ज, शौच खुलकर ना आना हो वो अगर खाना खाने के बाद ही एक चुटकी समुद्री बारीक बालू मिट्टी दिन में 2-3 बार निगल लें तो दूसरे दिन ही पेट की आंतें ढीली पड़ जाएगी और मल आसानी से निकलने लगेगा तथा आखिर में कब्ज भी दूर हो जाएगी।
मिट्टी के प्रयोग
मिट्टी के चिकित्सीय गुण
मिट्टी के अंदर ज़हर को खींच लेने की बहुत ज़्यादा ताकत है।
ये शरीर के अंदर के पुराने से पुराने मल को घुलाती है और बाहर निकालती है।
मिट्टी शरीर के ज़हरीले पदार्थों को बाहर खींच लेती है।
त्वचा के रोग जैसे फोड़े-फुंसी सूजन, दर्द आदि होने पर मिट्टी काफ़ी लाभकारी साबित होती है।
मिट्टी जलन, स्राव और तनाव आदि को समाप्त करती है।
शरीर की फ़ालतू गर्मी को मिट्टी खींचती है।
मिट्टी शरीर में जरूरी ठंडक पहुंचाती है।
मिट्टी बदबू और दर्द को दूर करने वाली है।
ये शरीर में चुम्बकीय ताकत देती है जिससे चुस्ती-फुर्ती और ताकत पैदा होती है।
मिट्टी के अलग-अलग प्रयोग
मिट्टी में सोना - मिट्टी में सोने से नींद ना आना, स्नायु की कमज़ोरी और ख़ून की ख़राबी जैसे रोग समाप्त हो जाते हैं।
मिट्टी की मालिश - मिट्टी को शरीर पर अच्छी तरह से मलने से और शरीर पर लगाने से ज़हरीले तत्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
मिट्टी स्नान - साबुन की जगह शरीर पर मिट्टी लगाकर नहाने से हर तरह के रोगों में लाभ होता है।
मिट्टी पर नंगे पैर घूमना - मिट्टी पर नंगे पैर घूमने से गुर्दे के रोगों में आराम आता है, आंखों की रोशनी तेज होती है और शरीर को चुम्बकीय ताकत मिलती है।
मिट्टी की पट्टी - मिट्टी की पट्टी प्राकृतिक चिकित्सा में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है तथा बहुत से रोगों में इसका इस्तेमाल होता है। पेट के हर तरह के रोग में इसका बहुत ही ख़ास स्थान है। इसका इस्तेमाल पेड़ू, पेट, छाती, माथे, आंख, सिर, रीढ़ की हड्डी, गला, पांव, गुदा आदि जहाँ पर भी जरूरत पड़े कर सकते हैं।
मिट्टी की पट्टी बनाने की विधि - मिट्टी को बहुत अच्छी तरह से बारीक पीसकर और छानकर इस्तेमाल से 12 घंटे पहले भिगों दें। इस्तेमाल के समय जरूरत के मुताबिक एक बारीक सूती कपड़ा बिछाकर आधा इंच मोटी परत की मिट्टी की पट्टी को फैला दें। शरीर के जिस भाग पर मिट्टी की पट्टी लगानी हो इसे उलटकर लगा दें और ऊपर से किसी गर्म कपड़े से ढक दें। इस पट्टी के लगाने का समय ज़्यादा से ज़्यादा 20 से 30 मिनट तक होना चाहिए नहीं तो मिट्टी द्वारा खींचा गया ज़हर शरीर में दोबारा चला जाता है। जो मिट्टी एक बार इस्तेमाल कर ली गई हो उसे दोबारा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
कुदरती उपचार - कुदरती उपचार का मतलब ये है कि कुदरत के बनाए हुए नियमों का पालन करना और कुदरत के तत्वों - पृथ्वी (मिट्टी), जल, सूर्य और वायु का ऐसे इस्तेमाल करना जिससे शरीर में जमा हुआ कूड़ा-करकट बाहर निकल जाए, शरीर शुद्ध बना रहे और शरीर के अंदर की चेतना शक्ति ताकतवर बनी रहे, शरीर के सभी रोग दूर हो और शरीर सही तरह से काम करता रहे।
पृथ्वी (मिट्टी) - मिट्टी में बहुत ज़्यादा मात्रा में जंतु मौजूद होते हैं। इसलिए गीली मिट्टी को पेट या शरीर के दूसरे हिस्सों पर रखने को कम ही कहा जाता है। हरा रस बनाते समय बची हुई चटनी या सीठी का इस्तेमाल मिट्टी की तरह कर सकते हैं। ऐसी सीठी आंख, पेट या चमड़ी के रोगों वाले हिस्सों पर रखी जा सकती है। उसके सूख जाने पर उसके ऊपर हरा रस छिड़क लें या दूसरी हरी सीठी अथवा चटनी रख लें। हरी सीठी रखने के बाद उस पर सूरज की धूप खाने से बहुत अच्छा नतीजा मिलता है। सफेद दाग, ल्युकोडर्मा, कोढ़ आदि रोगों में सीठी बहुत ही लाभकारी असर करती है।
विभिन्न रोगों में सहायक
फोड़ा :-- सूजन, फोड़ा, अंगुली की विषहरी (उंगुली में ज़हर चढ़ने पर) में गीली मिट्टी का लेप हर आधे घंटे तक बदलते रहने से लाभ होता हैं। फोड़ा बड़ा तथा कठोर हो, फूट न रहा हो तो उस पर गीली मिट्टी का लेप करें। इससे फोड़ा फूटकर मवाद बाहर आ जाती है। बाद में गीली मिट्टी की पट्टी बांधते रहें। मिट्टी की पट्टी या लेप रोग को बाहर खींच निकालता है। मुल्तानी मिट्टी या चिकनी मिट्टी को पीसकर इसकी टिकिया बनाकर फोड़ों पर बांधने से फोड़े ठीक हो जाते हैं।
कनफेड (कान के नीचे जलन होकर सूजन आ जाना) :-- कनफेड होने पर काली मिट्टी का लेप करने से लाभ होता है।
दांतों की मज़बूती :-- दांत हिलते हो, टूटने जैसे हो तो चिकनी मिट्टी (चाहे काली हो या लाल) को भिगोकर रोजाना सुबह-शाम मसूढ़ों पर मलने से दांत मज़बूत हो जाते हैं।
दांत के दर्द :-- साफ़ मिट्टी से रोजाना 3 बार मजंन करने से दांत दर्द ठीक हो जाता है।
पायरिया :-- साफ़ मिट्टी को पानी में भिगोकर कुछ समय मुंह तक में रखें, फिर थूककर कुल्ले करें। इससे पायरिया व दांतों के रोगी को लाभ होगा। इस प्रयोग के समय मिठाई का सेवन न करें।
कब्ज :-- पेट पर गीला कपड़ा बिछायें। उस पर गीली मिट्टी का लेप करके मिट्टी बिछायें। इस पर फिर कपड़ा बांधे। रातभर इस तरह पेट पर गीली मिट्टी रखने से कब्ज दूर होगी। मल बंधा हुआ तथा साफ़ आयेगा।
सिर दर्द :-- गीली मिट्टी की पट्टी को सिर पर रखने से सिर दर्द दूर होता है।
बिच्छू, बर्र (ततैयां) काटने पर :-- बिच्छू, बर्र (ततैयां) काटने पर गीली मिट्टी की पट्टी बांधने से आराम आता है।
ज्वर (बुखार) :-- गीली मिट्टी की पट्टी पेट पर बांधें, हर घंटे में बदलते रहें। इससे बुखार की जलन दूर हो जायेगी।
प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) :-- 1 महीने तक गीली मिट्टी पेट पर लगाने से तिल्ली का बढ़ना बंद हो जाता है।
रोग-निरोधक :-- आमतौर पर लोग बच्चों को एकदम साफ़ माहौल में रखते हैं और गलियों की धूल से बचाकर रखते हैं, जोकि समझदारी नहीं है क्योंकि धूल में पाये जाने वाले कई लाभदायक बैक्टीरिया बच्चों को कुछ रोगों से बचाने में उनकी मदद करते हैं। माताएं अपने बच्चों को धूल-मिट्टी के कणों से बचाकर रखती है। ऐसे रहने वाले बच्चे आगे चलकर एलर्जी व अस्थमा जैसे रोगों से पीड़ित हो जाते हैं।
नकसीर :-- रात को मिट्टी के बर्तन में आधा किलो पानी मिलाकर उसमें 10 ग्राम मुल्तानी मिट्टी भिगो दें। सुबह इस पानी को छानकर पीने से कुछ ही दिनों में सालों की पुरानी नकसीर ठीक हो जाती है। 1 गिलास पानी में रात को 5 चम्मच मुल्तानी मिट्टी भिगोकर सुबह पानी छानकर पियें तथा नाक पर मुल्तानी मिट्टी का लेप करें। इससे नाक से ख़ून बहना बंद हो जाता है।
पायरिया :-- साफ़ मिट्टी को पानी में भिगोकर कुछ समय मुंह में रखकर फिर थूककर कुल्ला करें। इससे पायरिया रोग खत्म हो जाता है।
गठिया रोग :-- जब घुटनों में दर्द हो तो रात को मिट्टी की पट्टी बांधकर पानी के भाप से घुटने की सिंकाई करें। इससे रोगी को लाभ मिलता है।
चेहरे की सुन्दरता :-- 1 बड़ा चम्मच मुल्तानी मिट्टी, 3 बड़े चम्मच दही, 1 चम्मच चाय और शहद मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को चेहरे पर लगायें। यह लेप त्वचा की गहरी सफाई करता है और त्वचा के बंद रोमकूपों को भी खोलता है जिससे त्वचा की ख़ूबसूरती बढ़ती है। एक टुकड़ा मुल्तानी मिट्टी का लेकर बहुत ही बारीक पीसकर उसका पाउडर बना लें। फिर इस पाउडर में इतना पानी मिला लें कि इस पाउडर की लुगदी (लेप) बन जाए। अब इस लेप को चेहरे पर 15 मिनट तक लगाकर सूखने दें। फिर 15 मिनट के बाद इसे गुनगुने पानी से धो लें। यह प्रयोग सप्ताह में 2 बार करने से चेहरे पर ताजगी छाई रहती है। 1 बड़े चम्मच मुल्तानी मिट्टी में 3 बड़े चम्मच सन्तरे का रस मिलाकर चेहरे पर लगायें। यह लेप त्वचा के दाग-धब्बों को दूर करने में बहुत ही लाभकारी है। इससे त्वचा में जो तैलीयपन होता है वह दूर होता है।
विसर्प-फुंसियों का दल बनना :-- मुल्तानी मिट्टी को भिगोकर पीस लें और इसमें कपूर मिलाकर शरीर पर लेप करें। फिर 1 घंटे के बाद नहा लें। इससे फुंसियों में बहुत ही लाभ होता है।
घमौरियां होने पर :-- शरीर पर मुल्तानी मिट्टी का लेप करने से घमौरियां मिट जाती हैं।
रंग को निखारने के लिए :-- 4 चम्मच मुल्तानी मिट्टी, 2 चम्मच शहद, 2 चम्मच दही और 1 चम्मच नींबू के रस को एक साथ मिलाकर चेहरे पर लगायें और आधे घंटे के बाद हल्के गर्म पानी से चेहरे को धो लें। फिर एक बर्फ़ का टुकड़ा लेकर पूरे चेहरे पर रगड़ लें। ऐसा करने से चेहरे का रंग साफ़ होता है।
बच्चों की नाभि की सूजन :-- मिट्टी के ढेले को आग में गर्म करके दूध में बुझा लें फिर उससे नाभि की गर्म-गर्म सिकाई करें। इससे बच्चों की नाभि की सूजन´ दूर हो जाती है।
नाभि रोग (नाभि का पकना) :-- पीली मिट्टी को तेज आग पर गर्म करने के बाद ठण्डा कर लें। उसके बाद उसे दूध में घिसकर बच्चे की नाभि पर लेप करें। इससे नाभि का दर्द ठीक हो जाता है।
कण्ठमाला :-- मिट्टी के तेल की थोड़ी सी बूंदे बताशे में डालकर छोटे बच्चे को 2 बूंद, 8 से 12 साल तक के बच्चे को 3 बूंदे और 12 साल से ज़्यादा के बच्चे को 4 बूंद खिलाने से कुछ ही दिनों में कण्ठमाला (गले की गांठे) समाप्त हो जाती हैं।
सरकारी भवनों में लाल मिटटी व इसी मिटटी में लगे पौधे उन्नति देते हैं
कार्यालयों में रेतीली मिटटी व इसी मिटटी के गमलों में लगे पौधे उन्नति व लाभ देते है
व्यापार स्थल पर लाल व पीली मिटटी को मिला कर प्रयोग में लाना चाहिए व इसी मिटटी को गमलों में रख कर पौधे लगायें तो व्यापार वृद्धि होती है
अध्ययन कक्ष, लाइब्रेरी आदि में रेतीली व लाल मिटटी मिला कर उपयोग में लायें व इसी में पौधे उगाने से विद्या व ज्ञान का लाभ मिलता है
धार्मिक स्थलों व अस्पताल आदि में काली मिटटी का ही प्रयोग किया जाना चाहिए उसमें ही पौधे उगायें
घर के निर्माण के लिए लाल मिटटी वाली भूमि श्रेष्ठ होती है
कृषि के लिए काली व भूरी मिटटी श्रेष्ठ होती है
चिकित्सा के लिए चिकनी मिटटी, मुल्तानी मिटटी ज्यादा लाभदायक होती है
खेल सम्बन्धी स्थान के लिए रेतीली मिटटी उत्तम होती है
वास्तु के अनुसार सफेद मिटटी को ब्रह्मणि मिटटी कहा जाता है जो ज्ञान विचार बुद्धि विवेक धर्म कर्म में
बल देने वाली होती है
लाल रंग की मिटटी को कत्रानी मिटटी कहा गया है जो शक्ति देने वाली, उर्जा देने वाली, सत्ता का सुख
देने वाली और भोग देने वाली होती है
हरे रंग से मिलती जुलती मिटटी को वैश्य मिटटी कहा गया है जो धन लाभ, समृद्धि व सुखदायिनी होती है
काले रंग की मिटटी को शूद्रनी कहा गया है जो रहने के लिए उत्तम नहीं पर कृषि आदि कार्यों के लिए अच्छी
होती है तथा रोग हरनेवाली, आयु देने वाली, आनन्द देने वाली व यश देने वाली होती है
जिस मिटटी से सुगंध आती हो हर तरह से लाभ व उन्नति देती है
सडांध वाली मिटटी को अशुभ कहा गया है जिसका प्रयोग हर प्रकार से वर्जित होता है
मिट्टी दुनिया का सारा मल, कूड़ा या हर तरह की गन्दगी को अपने अंदर समा लेती है और खुद अपने आप में शुद्ध हो जाती है। ज़मीन के अंदर जो कुछ भी दबा दिया जाता है वह मिट्टी बन जाता है।
भारत की मृदा सम्पदा पर देश के उच्चावच तथा जलवायु का व्यापक प्रभाव परिलक्षित होता है। देश में इनकी विभिन्नताओं के कारण ही अनेक प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं। यहाँ की मिट्टी की विशेषताओं में मिलने वाली विभिन्नता का सम्बन्ध चट्टानों की संरचना, उच्चावचों के धरातलीय स्वरूप, धरातल का ढाल, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति आदि से स्थापित हुआ है।
इस्तेमाल में आने वाली मिट्टी
मिट्टी चाहे कोई सी भी किस्म की क्यों न हो लेकिन होनी साफ-सुथरी जगह की चाहिए जैसे जहाँ सूरज की रोशनी पहुँचती हो तथा ज़मीन से दो या ढाई फुट से निकाली हुई हो। हर मिट्टी को धूप में सुखाकर और छानकर इस्तेमाल करना सबसे अच्छा है। दीमक के टीले की मिट्टी बहुत ही ज़्यादा गुणकारी होती है। नहाने और सिर को धोने के लिए मुलतानी मिट्टी बड़ी लाभकारी होती है।
बालू भी मिट्टी को ही बोला जाता है जो किसी भी मनुष्य के लिए उसी तरह जरूरी है जिस तरह भोजन और पानी। लेकिन बालू मिट्टी के गुणों को केवल प्राकृतिक चिकित्सक ही अच्छी तरह जानते हैं। प्राकृतिक दशा में खाई जाने वाली खाने की चीज़ें जैसे साग-सब्जी, खीरा, ककड़ी आदि के साथ हमेशा बालू मिट्टी का कुछ भाग ज़रूर होता है, जिसे हम जानकारी ना होने के कारण गंवा देते है। ये बालू मिट्टी के कण हमारी भोजन पचाने की क्रिया को ठीक रखने मे मदद करते हैं।
क्या किसी ने सोचा है कि पहाड़ी झरनों के पानी को स्वास्थ्य के लिए अच्छा क्यों बताया जाता है? इस पानी को पीने से भूख ज़्यादा क्यों लगती है और पाचन क्रिया क्यों ठीक होती है? ये सब इसलिए होता है क्योंकि इस पानी में बालू मिट्टी के कुछ अंश मिले हुए होते हैं, जिन्हे पानी के साथ पिया जाता है। ये झरने जो पहाड़ों से बहकर आते हैं और अपने साथ बालू मिट्टी का ढेर लाते हैं, और ये पानी भोजन को पचाने वाले साबित होता है। बालू मिट्टी के अंदर छुतैल ज़हर को समाप्त करने की ताकत होती है। बालू मिट्टी प्रकृति की ओर से मानो संक्रमण को दूर करने वाली दवा का काम करती है। प्रयोगों द्वारा ये साबित हो चुका है कि बालू मिट्टी मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी है। जिस व्यक्ति को पेट के रोग जैसे - कब्ज, शौच खुलकर ना आना हो वो अगर खाना खाने के बाद ही एक चुटकी समुद्री बारीक बालू मिट्टी दिन में 2-3 बार निगल लें तो दूसरे दिन ही पेट की आंतें ढीली पड़ जाएगी और मल आसानी से निकलने लगेगा तथा आखिर में कब्ज भी दूर हो जाएगी।
मिट्टी के प्रयोग
मिट्टी के चिकित्सीय गुण
मिट्टी के अंदर ज़हर को खींच लेने की बहुत ज़्यादा ताकत है।
ये शरीर के अंदर के पुराने से पुराने मल को घुलाती है और बाहर निकालती है।
मिट्टी शरीर के ज़हरीले पदार्थों को बाहर खींच लेती है।
त्वचा के रोग जैसे फोड़े-फुंसी सूजन, दर्द आदि होने पर मिट्टी काफ़ी लाभकारी साबित होती है।
मिट्टी जलन, स्राव और तनाव आदि को समाप्त करती है।
शरीर की फ़ालतू गर्मी को मिट्टी खींचती है।
मिट्टी शरीर में जरूरी ठंडक पहुंचाती है।
मिट्टी बदबू और दर्द को दूर करने वाली है।
ये शरीर में चुम्बकीय ताकत देती है जिससे चुस्ती-फुर्ती और ताकत पैदा होती है।
मिट्टी के अलग-अलग प्रयोग
मिट्टी में सोना - मिट्टी में सोने से नींद ना आना, स्नायु की कमज़ोरी और ख़ून की ख़राबी जैसे रोग समाप्त हो जाते हैं।
मिट्टी की मालिश - मिट्टी को शरीर पर अच्छी तरह से मलने से और शरीर पर लगाने से ज़हरीले तत्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
मिट्टी स्नान - साबुन की जगह शरीर पर मिट्टी लगाकर नहाने से हर तरह के रोगों में लाभ होता है।
मिट्टी पर नंगे पैर घूमना - मिट्टी पर नंगे पैर घूमने से गुर्दे के रोगों में आराम आता है, आंखों की रोशनी तेज होती है और शरीर को चुम्बकीय ताकत मिलती है।
मिट्टी की पट्टी - मिट्टी की पट्टी प्राकृतिक चिकित्सा में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है तथा बहुत से रोगों में इसका इस्तेमाल होता है। पेट के हर तरह के रोग में इसका बहुत ही ख़ास स्थान है। इसका इस्तेमाल पेड़ू, पेट, छाती, माथे, आंख, सिर, रीढ़ की हड्डी, गला, पांव, गुदा आदि जहाँ पर भी जरूरत पड़े कर सकते हैं।
मिट्टी की पट्टी बनाने की विधि - मिट्टी को बहुत अच्छी तरह से बारीक पीसकर और छानकर इस्तेमाल से 12 घंटे पहले भिगों दें। इस्तेमाल के समय जरूरत के मुताबिक एक बारीक सूती कपड़ा बिछाकर आधा इंच मोटी परत की मिट्टी की पट्टी को फैला दें। शरीर के जिस भाग पर मिट्टी की पट्टी लगानी हो इसे उलटकर लगा दें और ऊपर से किसी गर्म कपड़े से ढक दें। इस पट्टी के लगाने का समय ज़्यादा से ज़्यादा 20 से 30 मिनट तक होना चाहिए नहीं तो मिट्टी द्वारा खींचा गया ज़हर शरीर में दोबारा चला जाता है। जो मिट्टी एक बार इस्तेमाल कर ली गई हो उसे दोबारा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
कुदरती उपचार - कुदरती उपचार का मतलब ये है कि कुदरत के बनाए हुए नियमों का पालन करना और कुदरत के तत्वों - पृथ्वी (मिट्टी), जल, सूर्य और वायु का ऐसे इस्तेमाल करना जिससे शरीर में जमा हुआ कूड़ा-करकट बाहर निकल जाए, शरीर शुद्ध बना रहे और शरीर के अंदर की चेतना शक्ति ताकतवर बनी रहे, शरीर के सभी रोग दूर हो और शरीर सही तरह से काम करता रहे।
पृथ्वी (मिट्टी) - मिट्टी में बहुत ज़्यादा मात्रा में जंतु मौजूद होते हैं। इसलिए गीली मिट्टी को पेट या शरीर के दूसरे हिस्सों पर रखने को कम ही कहा जाता है। हरा रस बनाते समय बची हुई चटनी या सीठी का इस्तेमाल मिट्टी की तरह कर सकते हैं। ऐसी सीठी आंख, पेट या चमड़ी के रोगों वाले हिस्सों पर रखी जा सकती है। उसके सूख जाने पर उसके ऊपर हरा रस छिड़क लें या दूसरी हरी सीठी अथवा चटनी रख लें। हरी सीठी रखने के बाद उस पर सूरज की धूप खाने से बहुत अच्छा नतीजा मिलता है। सफेद दाग, ल्युकोडर्मा, कोढ़ आदि रोगों में सीठी बहुत ही लाभकारी असर करती है।
विभिन्न रोगों में सहायक
फोड़ा :-- सूजन, फोड़ा, अंगुली की विषहरी (उंगुली में ज़हर चढ़ने पर) में गीली मिट्टी का लेप हर आधे घंटे तक बदलते रहने से लाभ होता हैं। फोड़ा बड़ा तथा कठोर हो, फूट न रहा हो तो उस पर गीली मिट्टी का लेप करें। इससे फोड़ा फूटकर मवाद बाहर आ जाती है। बाद में गीली मिट्टी की पट्टी बांधते रहें। मिट्टी की पट्टी या लेप रोग को बाहर खींच निकालता है। मुल्तानी मिट्टी या चिकनी मिट्टी को पीसकर इसकी टिकिया बनाकर फोड़ों पर बांधने से फोड़े ठीक हो जाते हैं।
कनफेड (कान के नीचे जलन होकर सूजन आ जाना) :-- कनफेड होने पर काली मिट्टी का लेप करने से लाभ होता है।
दांतों की मज़बूती :-- दांत हिलते हो, टूटने जैसे हो तो चिकनी मिट्टी (चाहे काली हो या लाल) को भिगोकर रोजाना सुबह-शाम मसूढ़ों पर मलने से दांत मज़बूत हो जाते हैं।
दांत के दर्द :-- साफ़ मिट्टी से रोजाना 3 बार मजंन करने से दांत दर्द ठीक हो जाता है।
पायरिया :-- साफ़ मिट्टी को पानी में भिगोकर कुछ समय मुंह तक में रखें, फिर थूककर कुल्ले करें। इससे पायरिया व दांतों के रोगी को लाभ होगा। इस प्रयोग के समय मिठाई का सेवन न करें।
कब्ज :-- पेट पर गीला कपड़ा बिछायें। उस पर गीली मिट्टी का लेप करके मिट्टी बिछायें। इस पर फिर कपड़ा बांधे। रातभर इस तरह पेट पर गीली मिट्टी रखने से कब्ज दूर होगी। मल बंधा हुआ तथा साफ़ आयेगा।
सिर दर्द :-- गीली मिट्टी की पट्टी को सिर पर रखने से सिर दर्द दूर होता है।
बिच्छू, बर्र (ततैयां) काटने पर :-- बिच्छू, बर्र (ततैयां) काटने पर गीली मिट्टी की पट्टी बांधने से आराम आता है।
ज्वर (बुखार) :-- गीली मिट्टी की पट्टी पेट पर बांधें, हर घंटे में बदलते रहें। इससे बुखार की जलन दूर हो जायेगी।
प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) :-- 1 महीने तक गीली मिट्टी पेट पर लगाने से तिल्ली का बढ़ना बंद हो जाता है।
रोग-निरोधक :-- आमतौर पर लोग बच्चों को एकदम साफ़ माहौल में रखते हैं और गलियों की धूल से बचाकर रखते हैं, जोकि समझदारी नहीं है क्योंकि धूल में पाये जाने वाले कई लाभदायक बैक्टीरिया बच्चों को कुछ रोगों से बचाने में उनकी मदद करते हैं। माताएं अपने बच्चों को धूल-मिट्टी के कणों से बचाकर रखती है। ऐसे रहने वाले बच्चे आगे चलकर एलर्जी व अस्थमा जैसे रोगों से पीड़ित हो जाते हैं।
नकसीर :-- रात को मिट्टी के बर्तन में आधा किलो पानी मिलाकर उसमें 10 ग्राम मुल्तानी मिट्टी भिगो दें। सुबह इस पानी को छानकर पीने से कुछ ही दिनों में सालों की पुरानी नकसीर ठीक हो जाती है। 1 गिलास पानी में रात को 5 चम्मच मुल्तानी मिट्टी भिगोकर सुबह पानी छानकर पियें तथा नाक पर मुल्तानी मिट्टी का लेप करें। इससे नाक से ख़ून बहना बंद हो जाता है।
पायरिया :-- साफ़ मिट्टी को पानी में भिगोकर कुछ समय मुंह में रखकर फिर थूककर कुल्ला करें। इससे पायरिया रोग खत्म हो जाता है।
गठिया रोग :-- जब घुटनों में दर्द हो तो रात को मिट्टी की पट्टी बांधकर पानी के भाप से घुटने की सिंकाई करें। इससे रोगी को लाभ मिलता है।
चेहरे की सुन्दरता :-- 1 बड़ा चम्मच मुल्तानी मिट्टी, 3 बड़े चम्मच दही, 1 चम्मच चाय और शहद मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को चेहरे पर लगायें। यह लेप त्वचा की गहरी सफाई करता है और त्वचा के बंद रोमकूपों को भी खोलता है जिससे त्वचा की ख़ूबसूरती बढ़ती है। एक टुकड़ा मुल्तानी मिट्टी का लेकर बहुत ही बारीक पीसकर उसका पाउडर बना लें। फिर इस पाउडर में इतना पानी मिला लें कि इस पाउडर की लुगदी (लेप) बन जाए। अब इस लेप को चेहरे पर 15 मिनट तक लगाकर सूखने दें। फिर 15 मिनट के बाद इसे गुनगुने पानी से धो लें। यह प्रयोग सप्ताह में 2 बार करने से चेहरे पर ताजगी छाई रहती है। 1 बड़े चम्मच मुल्तानी मिट्टी में 3 बड़े चम्मच सन्तरे का रस मिलाकर चेहरे पर लगायें। यह लेप त्वचा के दाग-धब्बों को दूर करने में बहुत ही लाभकारी है। इससे त्वचा में जो तैलीयपन होता है वह दूर होता है।
विसर्प-फुंसियों का दल बनना :-- मुल्तानी मिट्टी को भिगोकर पीस लें और इसमें कपूर मिलाकर शरीर पर लेप करें। फिर 1 घंटे के बाद नहा लें। इससे फुंसियों में बहुत ही लाभ होता है।
घमौरियां होने पर :-- शरीर पर मुल्तानी मिट्टी का लेप करने से घमौरियां मिट जाती हैं।
रंग को निखारने के लिए :-- 4 चम्मच मुल्तानी मिट्टी, 2 चम्मच शहद, 2 चम्मच दही और 1 चम्मच नींबू के रस को एक साथ मिलाकर चेहरे पर लगायें और आधे घंटे के बाद हल्के गर्म पानी से चेहरे को धो लें। फिर एक बर्फ़ का टुकड़ा लेकर पूरे चेहरे पर रगड़ लें। ऐसा करने से चेहरे का रंग साफ़ होता है।
बच्चों की नाभि की सूजन :-- मिट्टी के ढेले को आग में गर्म करके दूध में बुझा लें फिर उससे नाभि की गर्म-गर्म सिकाई करें। इससे बच्चों की नाभि की सूजन´ दूर हो जाती है।
नाभि रोग (नाभि का पकना) :-- पीली मिट्टी को तेज आग पर गर्म करने के बाद ठण्डा कर लें। उसके बाद उसे दूध में घिसकर बच्चे की नाभि पर लेप करें। इससे नाभि का दर्द ठीक हो जाता है।
कण्ठमाला :-- मिट्टी के तेल की थोड़ी सी बूंदे बताशे में डालकर छोटे बच्चे को 2 बूंद, 8 से 12 साल तक के बच्चे को 3 बूंदे और 12 साल से ज़्यादा के बच्चे को 4 बूंद खिलाने से कुछ ही दिनों में कण्ठमाला (गले की गांठे) समाप्त हो जाती हैं।
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