आजकल अंग्रेजी स्कूलों एवं अंग्रेजी प्रभाव के कारण.... हमारे हिंदुस्तान में लोगों के दिमाग में यह बात ठूंस -ठूंस कर भर दी जाती है कि..... मिसाइल , हवाई जहाज , टेलीविजन इत्यादि आधुनिक पाश्चात्य आविष्कार हैं.... और, हमें ये सब ज्ञान पश्चिम के देशों से प्राप्त हुआ है....!
लेकिन.... हकीकत बिल्कुल इसके विपरीत है.... और, सच्चाई यह है कि..... हम हिन्दुस्थानियों ने पश्चिम के देशों से ये सब विज्ञान नहीं सीखा है..... बल्कि, पश्चिम के देशों ने .... हम हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों से प्रेरणा लेकर.... अथवा, इसे बनाने की विधि चुरा कर ... इसे अविष्कार का नाम दे दिया है.... और, हम मूर्खों की तरह .... पश्चिमी देशों की वाह-वाही और उसकी नक़ल करने में लगे हुए हैं....!
उदाहरण के लिए..... युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले मिसाइले ..... आज के ज़माने में बेहद आधुनितम तकनीक मानी जाती है......
परन्तु.... यह जानकर आपको आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी होगी कि...... जिस ज़माने में पश्चिम के तथाकथित ""ज्ञानी लोगों"" के पूर्वज .... पहाड़ों की गुफा में रहकर .... और, कंद-मूल खा कर अपना जीवन बसर किया करते थे..... उस समय हमारे हिन्दुस्थान के युद्धों में मिसाइल जैसी आधुनिकतम तकनीकों का प्रयोग हुआ करता था...!
हम हिन्दुओं के विभिन्न ग्रंथों ..... खास कर रामायण और महाभारत में जगह-जगह पर बहुत सारे अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन आता है ....
यहाँ सबसे पहले यह समझ लें कि..... अस्त्र मतलब .. जिसे हाथ में रख कर युद्ध किया जाए .... जैसे कि.... तलवार, बरछी , भला इत्यादि....!
वहीँ.... शस्त्र का मतलब वैसा अस्त्र होता है...... जिसे दूर से ही दुश्मनों पर प्रहार किया जा सके...... यथा ... तीर, पक्षेपात्र इत्यादि....!
इस तरह.... हमारे पुरातन धार्मिक ग्रंथों में ..... विभिन्न प्रकार के पक्षेपात्रों ( मिसाइल) का उल्लेख मिलता है..... जिसे अस्त्र कह कर संबोधित किया गया है.....
जैसे कि.....
इन्द्र अस्त्र , आग्नेय अस्त्र, वरुण अस्त्र, नाग अस्त्र , नाग पाश , वायु अस्त्र, सूर्य अस्त्र , चतुर्दिश अस्त्र, वज्र अस्त्र, मोहिनी अस्त्र , त्वाश्तर अस्त्र, सम्मोहन / प्रमोहना अस्त्र , पर्वता अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, ब्रह्मसिर्षा अस्त्र , नारायणा अस्त्र, वैष्णवअस्त्र, पाशुपत अस्त्र ......ब्रह्मास्त्र .... इत्यादि....!
ये सभी ऐसे अस्त्र थे........ जो अचूक थे....!
इसमें से .....ब्रह्मास्त्र .... संभवतः..... परमाणु सुसज्जित मिसाइल को कहा जाता होगा.... जिसमे समुद्र तक को सुखा देने की क्षमता मौजूद थी...!
परन्तु.... ब्रह्मास्त्र के सिद्धांत को समझने के लिए हम एक Basic Weapon - चतुर्दिश अस्त्र का अध्ययन करते हैं जिसके आधार पर ही अन्य अस्त्रों का निर्माण किया जाता है।
चतुर्दिश अस्त्र ( एक साथ चारों दिशाओं में प्रहार कर सकने की क्षमता वाला अस्त्र ) के सम्बन्ध में हमारे धार्मिक ग्रंथों में इस प्रकार का उल्लेख है ....:
संरचना:
1.तीर (बाण) के अग्र सिरे पर ज्वलनशील रसायन लगा होता है....... और , एक सूत्र के द्वारा इसका सम्बन्ध तीर के पीछे के सिरे पर बंधे बारूद से होता है.
2.तीर की नोक से थोडा पीछे ....... चार छोटे तीर लगे होते हैं ..... और, उनके भी पश्च सिरे पर बारूद लगा होता है.
कार्य-प्रणाली:
1. जैसे ही तीर को धनुष से छोड़ा जाता है... वायु के साथ घर्षण के कारण........तीर के अग्र सिरे पर बंधा ज्वलनशील पदार्थ जलने लगता है.
2. उस से जुड़े सूत्र की सहायता से तीर के पश्च सिरे पर लगा बारूद जलने लगता है......... और , इस से तीर को अत्यधिक तीव्र वेग मिल जाता है.
3. और, तीसरे चरण में तीर की नोक पर लगे....... 4 छोटे तीरों पर लगा बारूद भी जल उठता है ....और, ये चारों तीर चार अलग अलग दिशाओं में तीव्र वेग से चल पड़ते हैं.
दिशा-ज्ञान की प्राचीन जडें (Ancient root of Navigation):
navigation का अविष्कार 6000 साल पहले सिन्धु नदी के पास हो गया था।
आपको यह जानकर और भी आश्चर्य होगा कि...... अंग्रेजी शब्द navigation, . हमारे संस्कृत से ही बना है.. और, ये शब्द सिर्फ हमारे संस्कृत का अंग्रेजी रूपांतरण है....!
: navi -नवी (new); gation -गतिओं (motions).
इसीलिए जागो हिन्दुओ...... और, पहचानो अपने आपको ....
हम हिन्दू प्रारंभ में भी ..... विश्वगुरु थे ... और, आज भी हम में विश्वगुरु बनने की क्षमता है....!
जय महाकाल...!!!
लेकिन.... हकीकत बिल्कुल इसके विपरीत है.... और, सच्चाई यह है कि..... हम हिन्दुस्थानियों ने पश्चिम के देशों से ये सब विज्ञान नहीं सीखा है..... बल्कि, पश्चिम के देशों ने .... हम हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों से प्रेरणा लेकर.... अथवा, इसे बनाने की विधि चुरा कर ... इसे अविष्कार का नाम दे दिया है.... और, हम मूर्खों की तरह .... पश्चिमी देशों की वाह-वाही और उसकी नक़ल करने में लगे हुए हैं....!
उदाहरण के लिए..... युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले मिसाइले ..... आज के ज़माने में बेहद आधुनितम तकनीक मानी जाती है......
परन्तु.... यह जानकर आपको आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी होगी कि...... जिस ज़माने में पश्चिम के तथाकथित ""ज्ञानी लोगों"" के पूर्वज .... पहाड़ों की गुफा में रहकर .... और, कंद-मूल खा कर अपना जीवन बसर किया करते थे..... उस समय हमारे हिन्दुस्थान के युद्धों में मिसाइल जैसी आधुनिकतम तकनीकों का प्रयोग हुआ करता था...!
हम हिन्दुओं के विभिन्न ग्रंथों ..... खास कर रामायण और महाभारत में जगह-जगह पर बहुत सारे अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन आता है ....
यहाँ सबसे पहले यह समझ लें कि..... अस्त्र मतलब .. जिसे हाथ में रख कर युद्ध किया जाए .... जैसे कि.... तलवार, बरछी , भला इत्यादि....!
वहीँ.... शस्त्र का मतलब वैसा अस्त्र होता है...... जिसे दूर से ही दुश्मनों पर प्रहार किया जा सके...... यथा ... तीर, पक्षेपात्र इत्यादि....!
इस तरह.... हमारे पुरातन धार्मिक ग्रंथों में ..... विभिन्न प्रकार के पक्षेपात्रों ( मिसाइल) का उल्लेख मिलता है..... जिसे अस्त्र कह कर संबोधित किया गया है.....
जैसे कि.....
इन्द्र अस्त्र , आग्नेय अस्त्र, वरुण अस्त्र, नाग अस्त्र , नाग पाश , वायु अस्त्र, सूर्य अस्त्र , चतुर्दिश अस्त्र, वज्र अस्त्र, मोहिनी अस्त्र , त्वाश्तर अस्त्र, सम्मोहन / प्रमोहना अस्त्र , पर्वता अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, ब्रह्मसिर्षा अस्त्र , नारायणा अस्त्र, वैष्णवअस्त्र, पाशुपत अस्त्र ......ब्रह्मास्त्र .... इत्यादि....!
ये सभी ऐसे अस्त्र थे........ जो अचूक थे....!
इसमें से .....ब्रह्मास्त्र .... संभवतः..... परमाणु सुसज्जित मिसाइल को कहा जाता होगा.... जिसमे समुद्र तक को सुखा देने की क्षमता मौजूद थी...!
परन्तु.... ब्रह्मास्त्र के सिद्धांत को समझने के लिए हम एक Basic Weapon - चतुर्दिश अस्त्र का अध्ययन करते हैं जिसके आधार पर ही अन्य अस्त्रों का निर्माण किया जाता है।
चतुर्दिश अस्त्र ( एक साथ चारों दिशाओं में प्रहार कर सकने की क्षमता वाला अस्त्र ) के सम्बन्ध में हमारे धार्मिक ग्रंथों में इस प्रकार का उल्लेख है ....:
संरचना:
1.तीर (बाण) के अग्र सिरे पर ज्वलनशील रसायन लगा होता है....... और , एक सूत्र के द्वारा इसका सम्बन्ध तीर के पीछे के सिरे पर बंधे बारूद से होता है.
2.तीर की नोक से थोडा पीछे ....... चार छोटे तीर लगे होते हैं ..... और, उनके भी पश्च सिरे पर बारूद लगा होता है.
कार्य-प्रणाली:
1. जैसे ही तीर को धनुष से छोड़ा जाता है... वायु के साथ घर्षण के कारण........तीर के अग्र सिरे पर बंधा ज्वलनशील पदार्थ जलने लगता है.
2. उस से जुड़े सूत्र की सहायता से तीर के पश्च सिरे पर लगा बारूद जलने लगता है......... और , इस से तीर को अत्यधिक तीव्र वेग मिल जाता है.
3. और, तीसरे चरण में तीर की नोक पर लगे....... 4 छोटे तीरों पर लगा बारूद भी जल उठता है ....और, ये चारों तीर चार अलग अलग दिशाओं में तीव्र वेग से चल पड़ते हैं.
दिशा-ज्ञान की प्राचीन जडें (Ancient root of Navigation):
navigation का अविष्कार 6000 साल पहले सिन्धु नदी के पास हो गया था।
आपको यह जानकर और भी आश्चर्य होगा कि...... अंग्रेजी शब्द navigation, . हमारे संस्कृत से ही बना है.. और, ये शब्द सिर्फ हमारे संस्कृत का अंग्रेजी रूपांतरण है....!
: navi -नवी (new); gation -गतिओं (motions).
इसीलिए जागो हिन्दुओ...... और, पहचानो अपने आपको ....
हम हिन्दू प्रारंभ में भी ..... विश्वगुरु थे ... और, आज भी हम में विश्वगुरु बनने की क्षमता है....!
जय महाकाल...!!!
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