होमियोपैथी चिकित्सा का प्रचलन हमारे देश में बहुत बढ़ गया है। पहले इस चिकित्सा पध्दति के बारे में कहा जाता था कि यह बहुत ही धीरे-धीरे असर करती है।
आज अनेक रोगों का होतियोपैथी चिकित्सा के माध्यम से उपचार किया जाता है। यह एक अदभुत चिकित्सा प्रणाली है। इसकी औषधिया प्राय: छोटी प्राय: छोटी-छोटी साबुदाने जैसी मीठी गोलियों के रुप में होती है।
आज अनेक रोगों का होतियोपैथी चिकित्सा के माध्यम से उपचार किया जाता है। यह एक अदभुत चिकित्सा प्रणाली है। इसकी औषधिया प्राय: छोटी प्राय: छोटी-छोटी साबुदाने जैसी मीठी गोलियों के रुप में होती है।
होमियोपैथी के जनक डॉ हैनीमैन थे जिनका जन्म 1755 में जर्मन हुआ था। वे एक ऐलोपैथी चिकित्सक थे। दस वर्ष अपनी सेवाऍं ऐलोपैथी में देने के पश्चात उन्होंने यह अनुभव किया कि ऐलोपैथी से एक बीमारी हटती है तो दूसरी कहीं ना कहीं उत्पन्न हो जाती है। इसके कारण वे एलोपैथी की सेवाऍं छोड़कर निर्दोष एवं सार्थक चिकित्सा पध्दति के खोज में जुट गये। होमियोपैथी की धारना है कि मानव का जो स्थूल शरीर हमें दिखाई देता है वह सुक्षम तत्वों से बना है। रोग का प्रारम्भ स्थुल शरीर में नहीं होता। पहले रोग सुक्षम शरीर में आता है। यदि सुक्षम शरीर अकी जीवन शक्ति (वाइटलफोर्स) प्रबल है तो रोग का आक्रमण शरीर पर नहीं हो सकता। सूक्षम शरीर की आंतरिक शक्ति कमजोर है तो अनेक रोग घेर लेते है, फिर शरीर में सिरदर्द, पेटदर्द, सर्दी जुकाम, खांसी, बुखार इत्यादि होते है। यदि उपचार से सूक्षम शरीर को रोगमुक्त कर दिया जाता है, तो स्थूल शरीर अपने आप स्वस्थ हो जाता है।
होमियोपैथी की दवाऍं रोगी के लक्षणों के आधार पर ही दी जाती है। लक्षणों के आधार पर औषधियॉं देकर सूक्षम शरीर को ठीक किया जाता है, फिर बीमारी का नाम कुछ भी हो सकता है। होमियोपैथी में पुराने जीर्ण रोगों का उपचार भी लक्षणों से ही होता है, जिससे मानसिक लक्षण, अंग विशेष के लक्षण, रोगों की प्रकृति आदि से रोगी की हिस्ट्री लिखी जाती है।
होमियोपैथी बनाने की विधि बड़ी विचित्र है। इस विधि में औषधि से स्थूल रुप को सूक्षम रुप में परिवर्तित किया जाता है। हैनिमन ने स्वयं अपने कई सहयोगियों पर दवाइयों का परीक्षण किया। होमियोपैथी दवाओं का आधार स्वस्थ मानव शरीर रहा है। जब तक मानव शरीर है तब तक होमियोपैथी दवाईयॉं वैसी ही चलती रहेगी। होमियोपैथी चिकित्सक उन दवाईयों को देते है जिसके लक्षण रोगी के लक्षणों से मिलते है। जब रोगी के लक्षण और औषधियों के लक्षणों में साम्यता होती है तब वह औषधि रोगी का रोग दूर कर देती है।
इस चिकित्सा के विशेषताऍं: होमियोपैथी औषधियों की एक्सपायरी डेट नहीं होती। इन्हें धूप, धूल, धूऑं, तेज गंध एवं केमिकल से बचाकर वर्षो तक उपयोग में लाया जा सकता है। इन औषधियों के कोई विपरित प्रभाव नहीं होते। इन दवाओं में विशेष परहेज भी नहीं होता केवल तेज गंध वाले वस्तुऍं नहीं सेवन करना चाहिये। औषधियों को हाथ नहीं लगाना चाहिये। सफेद कागज पर रखकर लेना चाहिये या शीशी के ढक्क्न में लेकर गोलियाँ सीधे मुँह में रखनी चाहिये। दवाइयॉं लेने के पहले तथा बाद में 15-20 मिनिट तक कोई पदार्थ अपने मुँह में नहीं डालना चाहिये। चाय, काफी, तम्बाकु, पान, प्याज सेवन के लिये कम से कम आधा घंटे का अंतराल पहले एवं बाद में अवश्य रखें। यदि किसी कारणवश रोगी को होमियोपैथी के अलावा दूसरे पैथी की दवाइयॉं सेवन करनी पड़े तो उस समय तक दवाईयों का सेवन बंद कर देना चाहिये।
होमियोपैथी चिकित्सा पध्दति में लक्षणों के आधार पर रोगों की जानकारी हो जाती है इसलिये अनावश्यक खर्चीली जॉंचे नहीं करवाना पड़ती है। होमियोपैथी चिकित्सा सरल एवं सस्ती है और पुराने रोगों में बहुत लाभदायक है। बहुत से लोग ऐसा मानते है कि होमियोपैथी देर से असर करती है, पहले रोग बढ़ाती है। दिन में बार-बार लेनी पड़ती है। इस धारणा के कारण होमियोपैथी चिकित्सा में विश्रवास नहीं करते है। कुछ लोग यह भी सोचते है कि इतनी छोटी-छोटी गोलिया इतने बड़े शरीर में कैसे असर करेगी। ऐसी अनेक भ्रांतियॉ होमियोपैथी के बारे में है।
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