आज मैं अपना पहला पत्र हिन्दी में लखने जा रहा हूँ आशा है कि आप सबको यह पसन्द आयेगा।
करीब तीन महिने से गुगल ब्लाग की सहायता से अब तक चार ब्लाग बना चुका हूँ। हिंदी में लिखने की बहुत दिनों से एक दिल में तम्मन्ना थी, सो लिखना शुरू कर दिया।
मेरा बचपन या युँ कहिये उम्र के किमती साल मैने दिल्ली में गुजारे। बहुत सी कम्पनींयों में काम किया, पर कहीं दिल ही नहीं लगा। एक छोड़ता, दूसरी पकड़ता गया। मेरे पिताजी एक पाठशाला में शिक्षक थे, विषय – कलाकारी (ड्राईंग)। आज मैं जो कुछ भी हूँ अपने माता-पिता के कारण हूँ। सन 2005 को हम दिल्ली के अपने मकान को बेच कर हैदराबाद आ गये। पिताजी सन 2001 से केंसर से पिडित थे। हैदराबाद आने के पंद्रह दिनों पश्चात ही उनका स्वर्गवास हो गया। लेकिन आज भी मैं वह दिन, साल याद करता हूँ, जो मैंने उनके साथ बिताये थे। कितने खुश थे हम, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। मैंने अपनी जिंदगी कभी अपने पिता के बिना सोची ही नहीं थी। आज भी मैं अपनी माताजी को सबसे अधिक मानता हूँ।
प्रेरणा स्त्रोत
करीब तीन महिने से गुगल ब्लाग की सहायता से अब तक चार ब्लाग बना चुका हूँ। हिंदी में लिखने की बहुत दिनों से एक दिल में तम्मन्ना थी, सो लिखना शुरू कर दिया।
कुछ अपने बारे में –
मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लूक रखता हूँ। नाम – उदयन, जाति – हिंदू (ब्राह्मण), मात्रुभाषा – मराठी, राष्ट्रभाषा – हिंदी, परिवार – माताजी, पत्नी, दो लड़के, व्यवसाय – इंटरनेट।
मेरा बचपन या युँ कहिये उम्र के किमती साल मैने दिल्ली में गुजारे। बहुत सी कम्पनींयों में काम किया, पर कहीं दिल ही नहीं लगा। एक छोड़ता, दूसरी पकड़ता गया। मेरे पिताजी एक पाठशाला में शिक्षक थे, विषय – कलाकारी (ड्राईंग)। आज मैं जो कुछ भी हूँ अपने माता-पिता के कारण हूँ। सन 2005 को हम दिल्ली के अपने मकान को बेच कर हैदराबाद आ गये। पिताजी सन 2001 से केंसर से पिडित थे। हैदराबाद आने के पंद्रह दिनों पश्चात ही उनका स्वर्गवास हो गया। लेकिन आज भी मैं वह दिन, साल याद करता हूँ, जो मैंने उनके साथ बिताये थे। कितने खुश थे हम, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। मैंने अपनी जिंदगी कभी अपने पिता के बिना सोची ही नहीं थी। आज भी मैं अपनी माताजी को सबसे अधिक मानता हूँ।
प्रेरणा स्त्रोत
मैं सन 2001 से याहू संदेशवाहक (मेसेंजर) पर बातचीत (चेटींग) करता हूँ। सन 2006 में एक लड़की के संर्पक में आया, जिसका पत्र (ब्लाग) पढ़कर मैं दंग रह गया। उसने बहुत अच्छा पत्र लिखा है। उसे पढ़कर लगा कि मै भी कुछ लिख सकता हूँ। धीरे-धीरे मैंने भी लिख शुरू कर दिया। मेरा पहला पत्र अंग्रजी भाषा में है विषय है – मानव व्यवहार उदयन पां़ कां़ तुलजापूरकर के द्वारा। फिर और भी तीन पत्र मैंने अंग्रेजी में ही बनाये। लेकिन मन में एक इच्छा थी कि हिंदी में लिखा जाये, क्योंकि मेरा ऐसा मानना है कि हम भारतीय हिंदी का जितना ज्यादा प्रयोग करेंगें, उतना ही हमारी राष्ट्रीय भाषा को प्रसिद्धि मिलेगी और इस तरह जैसे बाहर के देशवासी अपनी भाषा का आदर देते हुए उसका ज्यादा से ज्यादा उपयोग करतें हैं। हमारे देशवासी भी उसका उपयोग करेंगें, मैं ऐसी आशा करता हूँ।
मुझे किसी विशेष से प्रेम या तिरस्कार नहीं है, पर मैं यह चाहता हूँ कि हम भारतवासी अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को उचित सम्मान्न दें। अगर हम अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान्न नहीं कर सकते या हमें अपनी राष्ट्रभाषा का ज्ञान नहीं है तो हमें शर्म से डूब मरना चाहिए। देखिए अमेरिका, रूस, जापान, चीन आदी बडे़ बडे़ देशों को, क्या आप वहॉं एक भी ऐसा नागरिक ढूंढ सकते है, जिसे अपनी राष्ट्रभाषा का ज्ञान न हो? नहीं ना। इसिलिए उनकी उन्नती हो रही है।
ये मेरी पहली कोशिश है इसलिए नाराज मत होइएगा।
आशा करता हूँ की आपको पसंद आयेगी।
मुझे किसी विशेष से प्रेम या तिरस्कार नहीं है, पर मैं यह चाहता हूँ कि हम भारतवासी अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को उचित सम्मान्न दें। अगर हम अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान्न नहीं कर सकते या हमें अपनी राष्ट्रभाषा का ज्ञान नहीं है तो हमें शर्म से डूब मरना चाहिए। देखिए अमेरिका, रूस, जापान, चीन आदी बडे़ बडे़ देशों को, क्या आप वहॉं एक भी ऐसा नागरिक ढूंढ सकते है, जिसे अपनी राष्ट्रभाषा का ज्ञान न हो? नहीं ना। इसिलिए उनकी उन्नती हो रही है।
ये मेरी पहली कोशिश है इसलिए नाराज मत होइएगा।
आशा करता हूँ की आपको पसंद आयेगी।
आपका मित्र
उद्यान पां.कां. तुलजापुरकर
उद्यान पां.कां. तुलजापुरकर
स्वागत है। अच्छा लिखा है हिन्दी में ही लिखिये। अन्त में जो लिखा है वह दिखायी नहीं पड़ रहा है। हिन्दी यूनिकोड फॉन्ट में ही लिखिये।
जवाब देंहटाएंबहोत अच्छे
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